top of page

हमारे प्रेरणास्त्रोत – हमारे रहनुमा

Smt. Savitri Bhartiya.jpg

 

श्रीमती  सावित्री भारतीया

श्रीमती सावित्री भारतीया (गीता बजाज) बाल मंदिर संचालन समिति की प्रथम अध्यक्ष थीं. इनका जन्म 27 जनवरी 1914 को अजमेर में हुआ था. आप ने आगरा विश्वविद्यालय से एम.ए. व बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से बी.टी. किया. आप को मोंटेसरी शिक्षण व महाविद्यालय शिक्षण का कई वर्षों का अनुभव था और आप ने राजस्थान विश्वविद्यालय के महारानी कॉलेज की प्रथम प्राचार्या व गीता बजाज बाल मंदिर की प्रथम अध्यक्ष के पद पर रहते हुए छात्रों और कर्मचारियों में जिम्मेदारी और उत्साह कि गहरी भावना और सोच की नीव रखी.

आप की उत्कृष्ट कार्यप्रणाली और दूरदर्शितापूर्ण  सोच ने बाल मंदिर को शिक्षा जगत में अलग पहचान दिलाई. अपनी प्रगति में   अविस्मरणीय योगदान के लिए गीता बजाज बाल मंदिर  परिवार सावित्री भारतीया जी का सदैव कृतकृत्य रहेगा

 

श्री पूर्णचन्द्र जैन

श्री पूर्णचन्द्र जैन का जन्म 19 सितम्बर 1909 को जयपुर के जौहरी बाजार  के टुंकलिया भवन में हुआ था. इनकी प्रारम्भिक शिक्षा चटशाला में हुई थी जहां भारतीय संस्कृति एवं लोक साहित्य ही शिक्षा का आधार था. इनके जीवन और आचरण पर जयपुर  संस्कृति कि गहरी छाप थी. आपने  स्कूली शिक्षा जयपुर से व उच्च शिक्षा आगरा विश्विद्यालय से प्राप्त  की. साहित्य  एवं शिक्षा का इनके जीवन में विशेष स्थान था.

बाल मंदिर के लिए यह सौभाग्य कि बात थी कि “बाबू साहब”  श्री पूर्णचन्द्र जैन आजीवन संस्था के साथ जुड़ें रहे. उनके साहित्य और शिक्षा के प्रति लगाव की स्वाभाविक वृति के कारण ही  गीता बजाज बाल मंदिर आज जयपुर की प्रमुख शिक्षण संस्थाओं में से एक है. बाल मंदिर के विकास में इनके सराहनीय व उल्लेखनीय योगदान के कारण  ही बाल मंदिर केवल शिक्षा की दृष्टि से ही नहीं अपितु ऐतिहासिक दृष्टि से भी सम्मानित है.

 

श्री पूर्ण चन्द्र  जैन का व्यक्तित्व और जीवन निष्ठा हम सबके लिए प्रेरणा का स्त्रोत है.

POORAN CHAND JAIN.jpg
DANDIYA JI.jpg

 

तेजकरण जी डंडिया

 

समाज में ‘ मास्टरजी’ के नाम से अपनी पहचान बनाने वाले वयोवृद्ध  शिक्षविद् स्व. श्री तेजकरण डंडिया ने महावीर दिगंबर जैन शिक्षा समिति के अध्यक्ष के रूप में गीता बजाज बाल मंदिर में अपनी महत्त्वपूर्ण सेवाएं दीं. वे एक आदर्श शिक्षक, गणितज्ञ तथा समाजसेवी के रूप में जाने जाते हैं.

आप ने  गणित पर 50 से अधिक पुस्तकें लिखीं.  आप को “लीजेंड इन एजुकेशन”  की उपाधि और “अवंतिका रत्न ” से भी सम्मानित किया जा चुका है.

राज्य में शिक्षा के विकास में और बाल मन्दिरं परिवार और इसकी प्रगति में उनके महत्त्वपूर्ण योगदान को सदैव याद किया जाएगा ....

 

“मंजिल मिले या न मिले, इसका गम नहीं ..

   मंजिल की जुस्तजू  में मेरा कारवां तो है ...”

 

कोमलचन्द जी पाटनी

सादगी और विनम्र व्यक्तित्व के धनी, उद्योगपति, समाजसेवी एवं शिक्षविद् स्व. कोमलचन्द जी पाटनी का गीता बजाज संसथान कि प्रगति में अमूल्य योगदान रहा है |

 

समाज सेवा और बच्चों कि शिक्षा के प्रति आपके लगाव के कारण ही सन 1977 में आप  गीता बजाज बाल मंदिर संस्थान से जुड़ें. आपके शिक्षा के प्रति निस्वार्थ समर्पित भाव के कारण ही सन 1994 में आप संस्थान की कार्यकारिणी द्वारा सर्वसम्मति से गीता बजाज संस्थान के अध्यक्ष चुने गए |

 

सन 1995 में गीता बजाज (दीदी) जी के आकस्मिक निधन के पश्चात  संस्थान की सम्पूर्ण जिम्मेदारी आपके ऊपर आ गई एवं इस जिम्मेदारी को आपने सदैव निस्वार्थ भाव से एक कर्मठ कार्यकर्त्ता के रूप में सुचारू रूप से निभाया. आपने श्री जसदेव सिंह जी के साथ मिलकर निरन्तर संस्थान कि प्रगति के लिए कई महत्त्वपूर्ण कार्य किये और संस्थान को सुचारू रूप से संचालित किया |

 

आप सन 2009 तक संस्थान में अध्यक्ष पद पर कार्यरत रहे और आपने संस्थान के उत्थान में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई |

 

आप जयपुर  चैम्बर ऑफ़ कॉमर्स के अध्यक्ष, राजस्थान चैम्बर ऑफ़ कॉमर्स के उपाध्यक्ष और स्वच्छ नगर संस्थान के सचिव भी रहे , साथ ही कई वर्षों तक जयपुर समारोह कार्यक्रम में आपकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही |

 

आपकी दृढ़ता और चैम्बर कार्य के प्रति समर्पण हम सभी के लिए प्रेरणास्त्रोत रहेंगे. संस्थान आपके द्वारा किए गए महत्त्वपूर्ण कार्यों एवं सहयोग के लिए आपका आभारी रहेगा. आपका प्रभावशाली प्रशासनिक कौशल और समर्पित नेतृत्व हमें हेमाशा मार्गदर्शित करता रहेगा |

Sh. Komal Chand Patni.jpg
Sh. B.L. Pangadiya.jpg

 

श्री बी. एल. पानगडिया

कोषाध्यक्ष

बाल मंदिर, 1960 – 2003   

 

राजस्थान के भीलवाड़ा  जिले के ग्राम सुवाणा में 30 जून 1921 को  जन्मे  श्री बी . एल . पानगाडिया ने जयपुर में राजपूताना विश्वविद्यालय से बी. ए. , एल. एल. बी. की परीक्षाये उच्च श्रेणी में उत्तीर्ण की. वे राजस्थान के प्रथम दैनिक ‘लोकवाणी’ जयपुर के व  ‘प्रजामंडल पत्रिका’ के संपादक मंडल के प्रमुख सदस्य रहे  और उन्होंने अंग्रेजी दैनिक ‘बॉम्बे क्रोनिकल’ का राजस्थान में प्रतिनिधित्व भी किया.

अप्रैल 1948 में जब  संयुक्त राजस्थान (उदयपुर) बना तो नव-निर्मित राज्य के प्रधानमंत्री श्री माणिक्य लाल जी वर्मा के आह्वन पर उन्होंने पुन: राज्य सेवा में प्रवेश किया. राजस्थान सरकार में 26 वर्ष तक विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर रह कर वे 1976 में राज्य सेवा से निवृत हुए - इस काल में उन्होंने राज्य में उच्च कोटि की प्रशासन- क्षमता का प्रदर्शन किया. और इस दौरान राज्य के लगभग हरेक मुख्यमंत्री के साथ कार्य किया.

 

श्री पानगडिया बाल मंदिर  संस्थान से इसके जन्म से ही निरंतर जुड़े रहे. कार्यकारिणी सदस्य और कोषाध्यक्ष के रूप में बाल मंदिर परिसर के निकट मोती  डूंगरी मार्ग पर रहते हुए वे  रात हो अथवा  दिन,  चौबीस घंटे इस उगती हुई संस्था के लिए अपना समय देने को तैयार रहते थे.  पानगडिया जी ने सदैव अपना दायित्व पूर्ण  समर्पण के साथ निभाया.

 

संस्थान के कोषाध्यक्ष की जिम्मेदारी श्री पानगडिया ने नवम्बर 2003 तक यानि 51 वर्ष की लम्बी अवधि तक  निभाई और उसके बाद भी अपने जीवन के अंत तक वे संस्था से जुड़े रहे. बाल मंदिर परिवार सदैव इस योगदान के लिए कृतज्ञतापूर्वक  एवं सम्मान के साथ आप का स्मरण करता रहेगा|  

श्री जगन्नाथ सिंह जी मेहता

अध्यक्ष , कार्यकारिणी  समिति

 बाल मंदिर,  1986–1990

 

श्री जगन्नाथ सिंह जी मेहता एक दूरदर्शी शिक्षाविद्, कर्मनिष्ठ प्रशासक एवं बाल विकास के प्रति समर्पित व्यक्तित्व थे.  आप सन् 1986 से 1990 तक संस्थान की कार्यकारिणी के अध्यक्ष रहे .उनके कार्यकाल में संस्थान ने नई ऊँचाइयों को छुआ.

वे संस्था द्वारा आयोजित गतिविधियों जैसे गांधी शैक्षिक  शिविर, श्रमदान, आर्ट एंड क्राफ्ट प्रदर्शनी आदि से अत्यंत प्रभावित थे.  इन कार्यक्रमों के माध्यम से बच्चों में अनुशासन, सृजनात्मकता, समाज सेवा और आत्मनिर्भरता जैसे गुणों का विकास हुआ, जिसे उन्होंने न केवल सराहा, बल्कि इसे एक आदर्श मॉडल के रूप में अपनाया. जब वे राजस्थान शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष बने, तब उन्होंने बाल मंदिर की इन गतिविधियों को समस्त राज्य के शैक्षणिक संस्थानों में लागू करने की दिशा में पहल की.  वे विभिन्न मंचों पर बाल मंदिर का उदाहरण देते हुए यह समझाते कि किस प्रकार ये शिविर और उद्यमी कार्यक्रम विद्यार्थियों और शिक्षकों दोनों के समग्र विकास में सहायक हैं. आप सदैव शिक्षक को आदर्श स्वरूप में देखना चाहते थे. वे चाहते थे कि हर विद्यार्थी न केवल शिक्षित, बल्कि देश का एक सच्चा नागरिक बने, जो राष्ट्र निर्माण में योगदान दे सके.  उनका कहना था कि शिक्षा का उद्देश्य बच्चों के समग्र विकास को शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और नैतिक सभी स्तरों पर सुनिश्चित करना है.

Sh Jagannath Singh Mehta.jpg

 

 

 

 

 

श्री जसदेव सिंह

स्व. गीता बजाज ने अन्तिम समय में श्री जसदेव सिंह जी से यह आश्वासन लेकर परलोक गमन किया कि मेरे बाद संस्था आप सँभालेंगे. अपने इस आश्वासन को निष्ठा से निभाया. इनका दूरदर्शन एवं आकाशवाणी का अनुभव था.  शैक्षिक जगत में कभी कार्य नहीं किया था परन्तु जिस निष्ठा, समर्पण एवं त्याग से उन्होंने संस्था को सँभाला, वह प्रशंसनीय है. आज शिक्षा जगत में गीता बजाज बाल मन्दिर का जो उच्च स्तरीय स्परूप है, उसका श्रेय श्री जसदेव जी को जाता है. इनका निधन संस्थान की अपूरणीय क्षति है. प्रसारण के क्षेत्र में अभूतपूर्व उपलब्धियों के लिए पदमश्री, अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक ऑर्डर तथा राजस्थान रत्न से विभूषित श्री जसदेव जी ने इस अलग प्रकार के कार्य को बखूबी निभाया.

सारा देश तो उन्हें जानता था एक अत्यंत लोकप्रिय प्रसारक और रेडियो-टी.वी. कमेंटेटर के रूप में जिसने अपने 50 वर्ष से अधिक के प्रसारण काल में 9 ओलंपिक खेल, अनेक एशियाई खेल, राष्ट्रमंडल खेल तथा सैकड़ों अन्य खेल प्रतियोगिताओं का जीवंत विवरण देश के करोड़ो श्रोताओं को अपनी मंत्रमुग्ध कर देने वाली आवाज और शब्दों के जरिए सुनाया. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खेलों के प्रति उनके योगदान को रेखांकित करते हुए अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति ने उन्हें ‘ओलंपिक ऑर्डर’ से विभूषित किया. लगभग 50 वर्ष तक जो आवाज आकाशवाणी या दूरदर्शन पर गणतंत्र दिवस समारोहों का सचित्र विवरण सुनाती रही, वो जसदेव जी की थी. उनकी कमेंट्री में संबंधित अवसर की ऐतिहासिक भूमिका, संबंधित स्थल की भौगोलिक जानकारी, दृष्टिगत हो रही प्रकृति का सचित्र विवरण तथा साहित्य का अवसरानुकूल समावेश उनकी विशिष्ट पहचाना थी.

 

 

 

श्री प्रकाश चंद जी सुराणा

Wiमृदुल व्यक्तित्व के धनी, पद्म श्री से सम्मानित देश के सबसे जाने माने जौहरियों में आपका नाम था - श्री प्रकाश चंद जी सुराणा बाल मंदिर संस्थान के अनेक वर्ष तक कोषाध्यक्ष रहे. पूज्य गीता जी को इनका पूरा सहयोग रहता था. आर्थिक दृष्टि से भी विभिन्न आयोजन कर संस्था में बालक-बालिकाओं के लिए सुविधा उपलब्ध कराते थे. व्यस्तता अधिक होते हुए भी संस्था के कार्यक्रमों में सदैव शामिल रहे. 2015 में आपका निधक संस्था के लिये अपूरणीय क्षति था.

KOMAL CHAND JI PATNI.jpg
Sh. Raj Kumar Kala.jpg

 

 

श्री राजकुमार जी काला  

संस्थान की कार्यकारिणी समिति के 2010 से 2015 तक अध्यक्ष रहे. संस्था से उनका लगाव प्रारंभ से ही था. संस्थापिका गीता बजाज को इनसे कार्य-संबल मिलता रहा. एक कुशल प्रशासक के साथ आप वरिष्ठ एडवोकेट भी थे, अतः संस्था के सभी प्रकरणों में बहुत ही निष्ठा एवं समर्पण भाव से पहल करते थे. काफी समय तक संस्थान के उपाध्यक्ष के रूप में इनका सहयोग मिलता रहा.  2015 में मधुमेह के कारणों से लम्बे समय तक बीमार रहने के बाद आपका निधक हो गया और संस्था के लिये यह एक अत्यंत दुखद समय था

bottom of page