Estd: 7th July 1952
स्थापना 7 जुलाई 1952
1919-1995
गीता गिरधर सभागार
सभागार की विशेषताएँ:
286 व्यक्तियों की बैठक क्षमता वाले इस अत्याधुनिक सभागार में निम्न सुविधाएँ उपलब्ध हैं :
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पुश बैक सीटें
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सेंट्रल एयर कंडीशनिंग
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विश्वस्तरीय प्रकाश एवं ध्वनि व्यवस्था
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दृश्य श्रव्य (ऑडियो विजुअल) प्रोजेक्शन सुविधा
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286 लोगों की बैठक क्षमता
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महिलाओं और पुरुषों के लिए पृथक ग्रीन रूम व्यवस्था
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अत्याधुनिक शौचालय व्यवस्था 70 से अधिक गाड़ियों तथा इतने ही दुपहिया वाहनों के लिए पर्याप्त एवं सुरक्षित पार्किंग सुविधा
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कुकिंग एवं रेफ़्रिजरेशन सुविधा से युक्त सुसज्जित पैंट्री
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स्वच्छ एवं सुरक्षित पेयजल
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चायपान अथवा भोजन की व्यवस्था के लिए सुरुचिपूर्ण घास का लॉन, तथा
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संबंधित अन्य व्यवस्थाएं
गीता गिरधर सभागार पर्यावरण के अनुकूल है. इसकी छत पर पैंतीस किलोवाट क्षमता का सौर विद्युत उत्पादन संयंत्र लगा हुआ है, जो न केवल संपूर्ण संस्थान परिसर की ज़रूरत पूरी करता है बल्कि राष्ट्रीय पावर ग्रिड को भी बिजली की आपूर्ति करता है. संस्थान का यह अत्याधुनिक सभागार न केवल संस्थान की स्वयं की ज़रूरतों को पूरा करती है, बल्कि अन्य लोगों को भी उपलब्ध कराती है जो कि यथा संभव दान सहायता दे कर हमारी मदद करते हैं.
पूरी तरह नया रूप ले चुके इस ऑडिटोरियम का उद्घाटन 6 अप्रैल 2018 को अभिनय एवं संगीत की दुनिया के सुप्रसिद्ध कलाकार तथा संगीत नाटक अकादमी के अध्यक्ष पद्मश्री शेखर सेन ने एक भव्य समारोह में किया. गीता जी के परिजनों की इच्छा के अनुरूप, इस ऑडिटोरियम को “गीता गिरधर सभागार” का नाम दिया गया - गिरधारीलाल बजाज, गीता जी के पति थे, जिनके 21 वर्ष की अल्पायु में हुए असामयिक निधन के बाद इस बहादुर महिला ने एक नई राह अख़्तियार की तथा उस पर अनवरत चलते हुए आने वाले दशकों ने उन्हें एक अभिनव एवं स्तुत्य रूप में पाया.
इतिहास
गीता गिरधर सभागार का अपना एक विशिष्ट इतिहास है. बहुत पहले से स्वर्गीय गीता बजाज का एक स्वप्न था कि उनके बाल मंदिर का अपना एक उपयुक्त सभागार या ऑडिटोरियम होना चाहिए. सभी कक्षा-कक्षों, प्रयोगशालाओं,पुस्तकालय आदि के लिए यथोचित इन्फ्रास्ट्रक्चर की व्यवस्था कर लेने के उपरांत उन्होंने अपनी पूरी शक्ति तथा संसाधन अपने इस चिर स्वप्न को पूरा करने पर लगा दिए. उन्होंने इसके लिए जहाँ से तथा जैसे भी संभव हुआ, आर्थिक एवं अन्य प्रकार की सहायता हासिल करने में अपनी पूरा समय लगा दिया , यहाँ तक कि संस्था से मिलने वाला अपना ख़ुद का वेतन भी उन्होंने वर्षों तक इसी कार्य के लिए संस्था को दान दे दिया. स्वतंत्रता सेनानी होने के नाते सरकार उन्हें जो पेंशन दे रही है,उसी से वे अपना निर्वाह करती थीं.
अंततः सभागार का निर्माण कार्य 1993 - 94 में शुरू हो सका और 1995 की पहली तिमाही के आस पास यह पूरी तरह से तैयार हो गया. देश के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा इस सभागार का उद्घाटन करने के लिए सहर्ष सहमत हो गए थे. किन्तु नियति को तो कुछ और ही मंज़ूर था – जब सभागार की सुसज्जा को अंतिम रूप दिया जा रहा था, तभी विपत्ति का पहाड़ टूट पड़ा. एक मज़दूर जिसने संभवतः अपनी बीडी जला कर, उस की जलती हुई तीली किसी पर्दे के पीछे छोड़ दी थी, उसकी ज़रा सी लापरवाही ने भयानक आग का रूप ले लिया और सभागार का पूरा अंदरूनी हिस्सा जलकर राख हो गया. यह गीता जी के लिए बहुत बड़ा सदमा था. इस दुर्घटना के कुछ दिन बाद ही उन्हें मस्तिष्क में रक्तस्राव हुआ - वे कोमा में चली गयीं और ज़िंदगी और मौत के बीच चले क़रीब तीन सप्ताह के संघर्ष के बाद इस दुनिया से विदा हो गयीं .
समय तेज़ी से निकलता गया और आखिरकार ऑडिटोरियम के पुनरुद्धार की ज़िम्मेदारी गीता जी की तीसरी पीढ़ी ने सँभाली. उनके दोहित्र गुरदेव सिंह ने, तत्कालीन संस्थान अध्यक्ष न्यायमूर्ति नगेंद्र जैन तथा कार्यकारिणी समिति एवं अन्य सदस्यों के सहयोग से इस का पुनर्निर्माण ही बहुत बड़ी एवं जटिल ज़िम्मेदारी थी, जिस के लिए वित्तीय संसाधन तथा तकनीकी विशेषज्ञों की सेवाएँ जुटायीं गयीं. अंततः अप्रैल 2018 में इस सामूहिक प्रयास के फलस्वरूप इस सभागार ने स्वर्गीय गीता जी के देखे सपने के अनुरूप एक अत्यंत आधुनिक, विश्व स्तरीय थियेटर का स्वरुप हासिल कर लिया.


